पौधे वाला गमला अच्छा और सच्चा या खाली गमला सच्चा?

पौधे वाला गमला अच्छा और सच्चा या खाली गमला सच्चा?

काफी समय पहले की बात है। प्रतापगढ़ नाम का एक राज्य था। वहां का राजा बहुत ही नेक शासक था। उसके राज्य में सभी हंसी-खुशी जीवन जी रहे थे। परंतु राजा को एक बहुत बड़ा दुख था। दरअसल उसे कोई संतान नहीं थी।

राजा अब बूढ़ा हो चला था। वह चाहता था कि उसका भी कोई उत्तराधिकारी हो, जिसे वह अपने राज्य की बागडोर सौंप सके। वह ऐसा उत्तराधिकारी चाहता था, जो राज्य को एक अच्छे शासक की तरह चला सके और प्रजा को खुश रख सके।

बहुत सोच-विचार करने के बाद उसने राज्य के ही किसी बच्चे को गोद लेकर अपना उत्तराधिकारी बनाने का निर्णय ले लिया। लेकिन अब फिर से एक बड़ी समस्या खड़ी हो गई थी। राज्य में एक नहीं, बल्कि कई योग्य और समझदार बच्चे थे। अब ऐसी स्थिति में किसे उत्तराधिकारी बनाया जाए, यह फैसला करना बहुत ही कठिन था।

फिर मन ही मन राजा ने कुछ सोचा और पूरे राज्य में घोषणा करवा दी कि राज्य भर के सभी बच्चे राजमहल में एकत्र हो जाएं। उसने अपने राज्य के लिए एक कुशल और योग्य उत्तराधिकारी खोजने के लिए एक बहुत ही शानदार योजना बना रखी थी।

अगले ही दिन सुबह के समय राज्य के सभी बच्चे राजमहल में एकत्र हो गए। राजा ने सभी बच्चों को अपने पास बुलाकर एक-एक पौधे का बीज दिया। बीज देने के बाद राजा ने कहा कि इस बीज को अपने घर ले जाकर गमले में डालकर सींचना है और 6 महीने बाद जिसके गमले का पौधा सबसे अधिक हरा-भरा होगा, उसे ही राज्य का उत्तराधिकारी बना दिया जाएगा।

सभी बच्चे बीज लेकर अपने-अपने घर चले गए और उन्होंने अपने-अपने बीज को गमले में बो दिया। राज्य भर के बच्चे बीज बोने के बाद पूरे तन-मन से उसकी देखभाल करने लगे।

हर शाम को बच्चे एक जगह एकत्र होते थे और अपने अपने गमले की कहानी एक-दूसरे को बताते थे। कोई बताता था कि उसके गमले में बीज से अंकुर फूट पड़ा है, तो कोई बताता था कि उसके गमले में छोटा सा पौधा उग आया है।

लेकिन इन्हीं बच्चों में से एक बच्चा ऐसा था, जो मुंह लटकाकर आता था, सबकी बातें सुनता था और बिना कुछ कहे वापस अपने घर लौट जाता था। दरअसल उसके गमले में बीज बोने के कई दिन बाद भी अंकुर नहीं फूटा था और उसमें पौधा उगने का कोई संकेत नजर नहीं आ रहा था।

हर दिन बच्चों की मुलाकात होती रही और इसके साथ ही सभी के गमले के पौधे बड़े होते गए, लेकिन उस एक बच्चे के गमले में अब तक पौधा नहीं उग सका। समय बीतता चला गया और धीरे-धीरे 6 महीने पूरे हो गए।

जैसे ही 6 महीने का समय पूरा हुआ राजमहल से सभी बच्चों के लिए बुलावा आ गया। सभी बच्चे अपना-अपना गमला लेकर राजमहल पहुंचने लगे, लेकिन जिस बच्चे के गमले में पौधा नहीं उगा था, वह बच्चा राजमहल जाने से कतरा रहा था। उसे डर था कि बिना पौधे वाले गमले को देखकर राजा उसे दंड देगा।

उसके माता-पिता ने उसे समझाया कि चाहे कुछ भी हो, उसे अपना गमला लेकर राजा के पास जाना चाहिए और पूरी ईमानदारी से सच्चाई का सामना करना चाहिए। माता-पिता के समझाने पर वह बच्चा अपना गमला लेकर राजमहल की ओर चल पड़ा।

राजमहल पहुंचने पर उसने देखा कि सभी बच्चों के गमले में पौधे लहलहा रहे थे, लेकिन उसका गमला खाली था। डर के कारण वह सभी बच्चों के पीछे छुपकर खड़ा हो गया। इसी बीच राजा भी आ गया और उसने सभी बच्चों के गमलों को देखना शुरू कर दिया।

सभी बच्चों के गमले देखने के साथ ही राजा उन्हें शाबाशी भी दे रहा था। अंत में राजा उस बच्चे के पास पहुंचा, जिसका गमला खाली था। खाली गमला देखते ही राजा का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। राजा ने बच्चे से पूछा कि उसने गमले में बीज डालने के बाद उसकी ठीक तरीके से देखभाल क्यों नहीं की।

राजा को गुस्से में देखकर वह बच्चा सहम चुका था। फिर भी उसने डरते-डरते कहा कि "हे महाराज, मैंने पूरी लगन से गमले में डाले गए बीज की देखभाल की, फिर भी पौधा नहीं उग सका। इसके लिए आप मुझे जो भी दंड देना चाहें, दे सकते हैं।"

इसके बाद राजा ने उस बच्चे का हाथ पकड़कर उसे सभी बच्चों के सामने लाकर खड़ा कर दिया। बच्चा बहुत ही अधिक डरा हुआ था। बच्चे को लग रहा था कि अब सभी बच्चों के सामने राजा उसे कोई भारी दंड देगा। उसे इस हालत में देखकर राज्य भर के सभी बच्चे हंस रहे थे।

लेकिन अचानक, सभी की उम्मीदों के विपरीत राजा ने उस बच्चे को गले से लगा लिया और कहा कि पूरे राज्य भर में यही एकमात्र सच्चा और ईमानदार बच्चा है। यह सुनकर राज्य के सभी बच्चे हैरान हो गए।

तब राजा ने बताया कि उसने 6 महीने पहले सभी बच्चों को उबले हुए बीज बोने के लिए दिए थे। और कोई कितना भी परिश्रम कर ले, उबले हुए बीज से पौधा नहीं उगा सकता है।

राजा ने बताया कि उसके गुप्तचर सभी बच्चों पर नजर रख रहे थे और गुप्तचरों से जानकारी मिली कि जब बच्चों के गमले में पौधे नहीं उगे, तो बच्चों ने राजा की ओर से मिले हुए बीज को फेंककर खुद दूसरे बीज बो दिए। यानी सभी बच्चों ने राजा के साथ धोखा किया और नकली बीज से पौधे उगाकर राजा के सामने ले आए।

दूसरी ओर, जिस बच्चे के गमले में पौधा नहीं उग सका, वह पूरी तरह से सच्चा और ईमानदार था। उस बच्चे ने राजा की ओर से मिले उबले हुए बीज को ही गमले में बो दिया और उसकी देखभाल करता रहा। पूरे 6 महीने बीतने तक उसने पौधे को उगाने की कोशिश की, लेकिन उबला हुआ बीज होने के कारण पौधा नहीं उग सका। और 6 महीने बीतने के बाद दंड मिलने का भय होने के बावजूद वह बच्चा राजमहल पहुंचा और उसने सच्चाई का सामना किया। इसलिए यह बच्चा ही राज्य का सच्चा उत्तराधिकारी बनने के योग्य है।

राजा की यह बात सुनकर राज्य भर के सभी बच्चे शर्म के कारण नीचे देखने लगे और राजा ने उस बच्चे को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया, जो सच्चा और ईमानदार था।

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि लोभ या लालच के कारण झूठ का और धोखे का सहारा लेना कभी भी अच्छा नहीं होता। सच्चाई के मार्ग पर चलते समय भले ही आपके साथ कोई न हो, लेकिन अंत में जीत आपकी ही होती है। इसलिए हमेशा सच्चाई और ईमानदारी के रास्ते पर चलना चाहिए।

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